Tuesday, February 9, 2010

phir chal pada hu main

फिर चल पड़ा हूँ मैं
दिल में एक उम्मीद लिए;
कुछ नया करने की आस लिए;
लाखों की भीड़ में
आज आगे निकलने की उम्मीद लिए।


काँधे पे लैपटॉप, हाथ में मोबाइल
नयी जंग लड़ने;
आज कुछ ख़ास करने
फिर चल पड़ा हूँ मैं।

फिर पहुंचा अपने कर्मक्षेत्र
आज कुछ नया सीखने;
सफलता की नयी पायदान चढ़ने
फिर चल पड़ा हूँ मैं।

फिर बैठा
अनपढ़े ईमेल का जवाब देने;
अनगिनत समस्याओं का समाधान देने
फिर चल पड़ा हूँ मैं।

दोपहरी आयी
बॉस का नया संदेस लिए;
सारे काम छोड़ टार्गेट की ओर
फिर दौड़ पड़ा हूँ मैं।

सांझ आयी
जाने का आदेश लिए;
दिल में फिर उम्मीद लिए;
कल कुछ नया करने
का प्रण लिए
घर की ओर
फिर चल पड़ा हूँ मैं।
फिर चल पड़ा हूँ मैं।