फिर चल पड़ा हूँ मैं
दिल में एक उम्मीद लिए;
कुछ नया करने की आस लिए;
लाखों की भीड़ में
आज आगे निकलने की उम्मीद लिए।
काँधे पे लैपटॉप, हाथ में मोबाइल
नयी जंग लड़ने;
आज कुछ ख़ास करने
फिर चल पड़ा हूँ मैं।
फिर पहुंचा अपने कर्मक्षेत्र
आज कुछ नया सीखने;
सफलता की नयी पायदान चढ़ने
फिर चल पड़ा हूँ मैं।
फिर बैठा
अनपढ़े ईमेल का जवाब देने;
अनगिनत समस्याओं का समाधान देने
फिर चल पड़ा हूँ मैं।
दोपहरी आयी
बॉस का नया संदेस लिए;
सारे काम छोड़ टार्गेट की ओर
फिर दौड़ पड़ा हूँ मैं।
सांझ आयी
जाने का आदेश लिए;
दिल में फिर उम्मीद लिए;
कल कुछ नया करने
का प्रण लिए
घर की ओर
फिर चल पड़ा हूँ मैं।
फिर चल पड़ा हूँ मैं।
Lehron ke saath to koi bhi tair leta hai lekin asli Insaan woh hota hai jo in lehron ko cheerkar aage bade
ReplyDeleteVruksh ho bade bhale, ho ghane ho bhale, Ek Patra chhah bhi mang mat, mang mat, mang mat
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